आर्य और काली छड़ी का रहस्य-15
अध्याय-5
युद्ध क्षेत्र
भाग-2
★★★
आर्य युद्ध क्षेत्र के अंदर चला आया। उसके साथ हिना भी थी और उसका भाई आयुध भी। युद्ध क्षेत्र किसी बड़े फुटबॉल के मैदान से कम नहीं था। पुराने इंटों और बड़े-बड़े पत्थरों के इस्तेमाल से बने इस युद्ध क्षेत्र में दीवारों से घिरा एक बर्फीला मैदान था। दीवारों पर बैठने के लिए व्यवस्था बनी हुई थी। बीच में जो मैदान था वह सीखने और सिखाने के लिए काम लिया जाता था। दीवारें ऊंची थी तो इस पार आ जाने के बाद आश्रम तक दिखना बंद हो जाता था।
हिना ने युद्ध क्षेत्र के बारे में कहा “पहले हमारे आश्रम में अंदर ही विद्यार्थियों को अलग-अलग चीजें सिखाई जाती थी। यह तलवारबाजी तक तो ठीक था मगर जादू के लिए आश्रम एक अच्छी जगह नहीं थी। लड़कियां गलत जादू का इस्तेमाल कर काफी नुकसान कर देती थी। इसके बाद इस जगह का निर्माण किया गया। यहां खास मंत्रों का इस्तेमाल किया गया है जिसकी वजह से कोई भी जादू युद्ध क्षेत्र की इन दीवारों को नुकसान नहीं पहुंचा सकता। यहां सभी को हर एक संभावित जादू इस्तेमाल करने का अधिकार हैं। सब बिना किसी डर के जादू इस्तेमाल कर सकते हैं।”
“जादू...” आर्य हिना से बोला “खुद के शरीर को नीली रोशनी से चमका लेने को ही तुम लोग जादू कहते हो ना।”
“नहीं वह तो बस जादू का हिस्सा है। इसके अलावा और भी बहुत कुछ है। नीली रोशनी वाली जो चीज में करती हूं उसे यहां का सुरक्षात्मक जादू कहा जाता है। आश्रम में हर लड़की को सबसे पहले यही सिखाया जाता है। यहां के आचार्यों का कहना है कि लड़की को सबसे पहले अपनी सुरक्षा करनी आनी चाहिए। और इसमें वह नीली रोशनी वाला जादू काफी मदद करता है। हम उस जादू की मदद से कई सारे सुरक्षा कवच बना सकते हैं, नीली रोशनी से चमकाने के बाद अगर किसी पर वार करें, तो उसका दुगना असर होता है।”
“यहां लड़के जादू सीखते हैं?” आर्य ने देखा कि हिना बार-बार जादू के नाम पर सिर्फ लड़कियों का ही नाम लेती थी। उसे याद था की उसे बताया गया था लड़के तलवार सीखते हैं जबकि लड़कियां जादू। लेकिन वह इसे पूरी तरह से समझना चाहता था।
हिना ने जवाब दिया “फिलहाल तो नहीं। यहां आश्रम के लड़कों को जादू से दूर ही रखा गया है। इसके पीछे बात यह है कि अंधेरे की सेना जादू का तोड़ आसानी से ढूंढ लेती है। इसके बाद उनका सामना करने के लिए तलवार और दूसरी चीजों का इस्तेमाल करना पड़ता है। इस तरह की चीजों से निपटने के लिए आश्रम ने दोनों ही चीजों की तैयारी कर ली। लड़कियों को जादू में निपुण करवाने लगे और लड़कों को तलवार में। अगर अंधेरे की सेना जादू का इस्तेमाल करती है तो लड़कियों को हमले के लिए आगे किया जाता है, और अगर अंधेरे की सेना तलवार युद्ध पर आ जाए तो लड़कों को।”
“और आश्रम के अचार्य..? वह किनका सामना करते हैं..?”
“ताकतवर सम्राटों का। अंधेरी की सेना जब भी हमला करती है तब उनके साथ बड़े-बड़े सम्राट भी होते हैं। आम भाषा में इसे सेनापति कहा जाता है। सेनापति सेना की तुलना में काफी ज्यादा ताकतवर होते हैं। इसलिए उनका सामना करने के लिए खुदा आश्रम के आचार्य उनके सामने जाते हैं।”
आर्य आश्रम से लेकर जुड़ी हुई बातों को काफी हद तक समझ रहा था। “मतलब एक तरह से पूरी रणनीति बनाकर युद्ध होता है। इस ओर से भी रणनीति बनाई जाती है और उस ओर से भी...”
“हां, लेकिन अभी आश्रम युद्ध को लेकर पूरी तरह से बेफिक्र है। यह सब पहले हुआ करता था अब नहीं। अब तो सुरक्षा चक्कर बन चुका है तो युद्ध वाले हालात ही पैदा नहीं होते, हम सब बिना युद्ध के भी सुरक्षित रहते हैं। फिर भविष्य में कभी युद्ध लड़ना पड़ा तो शायद यह सब चीजें दोबारा से इस्तेमाल हो। एक अच्छी रणनीति के साथ अंधेरे की सेना का सामना किया जाए।”
दोनों अभी बात कर रहे थे कि युद्ध क्षेत्र में एक अधिक उम्र वाले आचार्य का आगमन हुआ। आर्य उस आचार्य के बारे में जानता था। वह अचार्य वीरसेन थे। उनका काम लड़कों को तलवारबाजी सिखाना था। उनके साथ एक आचार्या भी आ रही थी, आर्य उसके बारे में नहीं जानता था।
हिना बोली “आचार्य वीरसेन को तो तुम जानते ही हो। उनके साथ जो दूसरी आचार्या हैं, उनका नाम आचार्य शोभा देवी है। वह यहां आश्रम में लड़कियों को जादू करना सिखाती है। मैंने तुम्हें कहा था ना, जिस तरह से गुरुओं का अलग काम होता है और वह हमें सुबह पढ़ाते हैं, उसी तरह आचार्यों का अलग काम होता है और वह हमें शाम को पढ़ाने का काम करते हैं। अब तुम आचार्य वीरसेन का ज्ञान लोगे, और मैं जादू सीखने के लिए आचार्या शोभा देवी का ज्ञान लूंगी।”
इतना कह कर हिना लड़कियों के झुंड की तरफ चल पड़ी थी। वहां लड़कीयां कतार बना कर खड़ी हो रही थी। इधर आर्य ने देखा कि हिना का भाई आयुध लड़कों की कतार की तरफ जा रहा था। आर्य भी उसके पीछे-पीछे चल पड़ा। वहां लड़कों की भी एक अलग कतार बनी। अब एक तरफ लड़कों की कतार थी और एक तरफ लड़कियों की कतार।
आचार्य वीरसेन लड़कों वाली करतार के सामने आकर खड़े हो गए। जबकि अचार्या शोभा देवी लड़कियों की कतार के सामने खड़ी हो गई। उनके सामने आते ही सभी ने अपना अपना सीना तान लिया था। सबको देखी देख आर्य भी उन्हीं की तरह सीना फुला कर खड़ा हो गया।
आचार्य वीरसेन लड़कों की कतार के आगे चहलकदमी करने लगे। उन्होंने आगे आगे खड़े छात्राओं की आंखों में आंखें मिलाई। इसके बाद वे उनके करीब आए और उनकी छाती को ठोका। छाती ठोकने के बाद उन्होंने कहा “तुम सब यहां विद्यार्थी नहीं हो...” वह जोशीले स्वर में संवाद कर रहे थे “ना ही कोई आम लड़के, जो बाकी की दुनिया में होते हैं। तुम सब यहां योद्धा हो। आश्रम के योद्धा। ऐसे योद्धा जिसका सामना अंधेरे से होगा। अंधेरे की सेना से होगा। तुम सब आने वाले समय के महान योद्धा हो।” आचार्य वीरसेन के कहने का अंदाज ऐसा था की उन्हें सुनने के बाद हर किसी में जोश भर रहा था। हर किसी को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वह अकेला ही युद्ध 50-50 योद्धाओं को हरा देगा। उनका अंदाज निराला था।
अचार्य वीरसेन आगे बोले “हर योद्धा का सिर्फ एक धर्म होता है... चाहे उसे लड़ना आए या ना आए ... पर फिर भी आखिर तक लड़ना। हार जाना, योद्धा के खून में नहीं होता... भाग जाना, योद्धा के खून में नहीं होता.... डर जाना, योद्धा के खून में नहीं होता, उसे सिर्फ एक चीज़ का पता होता है और वह है लड़ना। मुश्किलें हर किसी के सामने आती है। घबराने की स्थिति हर किसी के आगे पैदा होती हैं, कौन है जिसने मुश्किलों का सामना नहीं किया, कौन है जो उन्हें देखकर नहीं घबराता। पर जो इनसे लड़ता है वही योद्धा है, जो इनको हराता है वही योद्धा है। युद्ध में आपको दुश्मनों से नहीं लड़ना, आपको उन्हें नहीं खत्म करना, आपको खुद से लड़ना है, आपको अपने अंदर की भावनाओं को खत्म करना है।”
आचार्य वीरसेन के शब्द और भी ज्यादा हौसला अफजाई करने लगे थे। वहीं दूसरी ओर आर्य ने देखा की अचार्या शोभा देवी किसी तरह का उत्साह वर्धक भाषा नहीं दे रही थी। उनके हाथ में एक पतली लकड़ी थी जिसके जरिए वह लड़कीयों की कतार को अलग-अलग हिस्सों में बांट कर युद्ध क्षेत्र की दीवार की ओर भेज रही थी। वहां सभी लड़कियां दीवार के पास खड़ी होकर खुद को नीली रोशनी से चमका रही थी। इसके बाद वह नीली रोशनीयों के हमले दीवारों पर करने लगी थी।
अचार्य वीरसेन चहल कदमी करते हुए थोड़ा सा आगे आ गए "'डर' क्या है? आखिर किसे 'डर' कहते हैं? यह सिर्फ एक भावना ही तो है जो हमें अंदर ही अंदर आगे बढ़ने से रोकती है। हमें लड़ने से रोकती है। हमारे साहस को 'डर' दबा देता है। हमारी मुश्किलों को डर बढ़ा देता है। हमारे सामने दुश्मन खड़ा है हमें इस बात का डर नहीं, हम उससे लड़ेंगे कैसे हमें इस बात का डर है। हमें इस पर काबू पाना है। हमें डर पर काबू पाना है। आने वाले वक्त में ऐसे हजारों पल आएंगे जब आपके सामने खड़ा दुश्मन आपको डराएगा। इसलिए नहीं कि वह आपके सामने खड़ा है। इसलिए क्योंकि आपको उससे लड़ना है , आपको उसे हराना है, आपको उससे जुझना है। एक कहावत है जो आप सब ने सुन रखी होगी... जो डर गया सो मर गया... और एक कहावत जो मैं आज आपको सुनाने जा रहा हूं। मैं कभी डरता नहीं क्योंकि मैं एक योद्धा हूं। मैं कभी हारता नहीं क्योंकि मैं एक योद्धा हूं। मैं एक योद्धा हूं। मैं एक योद्धा हूं।"
कतार में खड़े सभी विद्यार्थियों ने इस वाक्य का उच्चारण किया। “मैं एक योद्धा हूं।” आर्य ने भी यह शब्द बोले। सबका बोलना इतना तेज था कि वहां मौजूद सारी लड़कियां एक बार के लिए पीछे मुड़ कर देखने लगी थी।
अचार्य वीरसेन ने आगे कहना जारी रखा “साहस। अब मैं तुम लोगों को साहस के बारे में बताता हूं। अगर साहस की बात की जाए तो साहस वह चीज है जो हमें जीताती है। जो आपको जीताती है। परिस्थितियां लाख हमारे विपरीत हो, मुश्किले चाहे हजार सामने खड़ी हो, लेकिन अगर हममे साहस है तो हम इन सबसे भी निपट लेंगे। यह सब मुश्किलें हमारे अदम्य साहस के सामने कुछ भी नहीं। साहस आपका मजबूत हथियार है और डर दुश्मन का।” इसके बाद उन्होंने अपने शब्दों को रोकते हुए कहा “आज हम देखेंगे कि आप पर साहस हावी होता है या फिर डर।"
अबकी बार सभी विद्यार्थी चौकन्ने हो गए। हर कोई अपने कान खड़े कर चुका था। आचार्य वीरसेन के शब्दों से साफ पता चल रहा था कि वह कुछ करने के लिए कहने वाले हैं।
आचार्य वीरसेन पीछे हटे और बोले “तो योद्धाओं...। आज हम यहां आपके डर और साहस की परीक्षा लेंगे। आप सब को एक इम्तिहान देना होगा। बहुत ही सामान्य इम्तिहान। आज तुम सब को आजमाया जाएगा, हर तरह से । इम्तिहान की शुरुआत हम सहन क्षमता से करेंगे। आप लोगों के साहस और डर की क्षमता को देखने के लिए आप लोगों को ठंडे बर्फीले पानी के अंदर खड़ा किया जाएगा। ठंडे पानी में जाना आपके डर पर आपकी जीत होगी और उसके अंदर की परिस्थितियों का सामना करना आपके साहस की जीत। जितना समय आप उस ठंडे पानी से लड़ने में व्यतीत करेंगे उस समय के हिसाब से आपको अंक दिए जाएंगे।"
विद्यार्थियों मे कानाफुसी होने लगी, कोई किसी से कुछ कह रहा था तो कोई किसी से कुछ। मगर सब आपस में धीरे-धीरे ही बात कर रहे थे।
आयुध आर्य के बिल्कुल पास ही खड़ा था। आचार्य वीरसेन के ठंडी बर्फ वाले पानी में खड़े होने के बारे में सुनकर उसने आर्य के कान में कहा “तुम्हें शायद मेरी बहन ने बताया नहीं होगा, मैं भी आज युद्ध क्षेत्र में पहली बार आया हूं। मैं यह सब सीखना नहीं चाहता था, मगर उसने कहा है कि वह मुझ पर हर वक्त नजर रखेगी और यहां ले आई। यह सच में काफी कठिन रहने वाला है।”
आर्य ने उसकी तरफ देखा, बर्फ वाले पानी में जाने को लेकर उसके चेहरे पर डर साफ दिखाई दे रहा था। “लेकिन मुझे नहीं लगता आचार्य वीरसेन पीछे हटने देंगे। अगर हम नहीं चाहेंगे तो भी वह पानी में धकेल कर रहेंगे। उनके शब्दों से तो मुझे यही लग रहा है।”
“हां, उन्हें जोशीले शब्दों में बात करने की आदत है। यही वजह है कि वह यहां तलवार सिखाते हैं। मगर मुझे सच में ठंडे पानी में जाने से डर लग रहा है।” आयुध के चेहरे पर बेचारे वाले भाव आ गए “मैं नहीं कर पाऊंगा।” आर्य आयुध की परेशानी को समझ रहा था। अगर वह भी ठंडे पानी को महसूस करता था तो शायद उसे भी इस बात का डर होता। मगर उसे ठंड के एहसास नहीं होते थे, तो वह भावहीन खड़ा था। जबकि बाकी के सदस्य नहीं।
★★★
रतन कुमार
18-Dec-2021 05:29 PM
वाह यर मजा आ गया आपकी कहानी पढ़कर मन तो कर है आज ही पूरे पार्ट पढ़ ले आपकी कहानी के चक्कर मे में यो सब भूल गया भाई कामधंधा छोड़ कर पढ़ने बैठ गया
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